बिलासपुर। छत्तीसगढ़ की न्यायधानी बिलासपुर में युवक की दर्दनाक मौत के बाद नगर निगम की अचानक सक्रियता ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। सुबह से ही निगम की टीमें फ्लेक्स, बैनर और पोस्टर हटाने में जुट गईं, जैसे किसी सोई हुई व्यवस्था को झकझोर कर जगा दिया गया हो। लेकिन सवाल यह है कि नगर निगम को इससे पहले ये अवैध फ्लेक्स और पोस्टर क्यों नहीं दिखे? क्या किसी अनहोनी के इंतज़ार में थे अधिकारी?
बता दें कि, शहर भर में अवैध फ्लेक्स-बैनरों की भरमार कोई नई बात नहीं है। चौराहों, बिजली के खंभों, सरकारी इमारतों और यहां तक कि ट्रैफिक सिग्नल्स तक पर नेताओं की तस्वीरें चमकती रहती हैं। कोई जन्मदिन मना रहा है, तो कोई स्वागत करा रहा है। हर आयोजन के बहाने शहर को पोस्टर-बैनरों से पाट दिया जाता है। लेकिन नगर निगम की आंखें जैसे बंद थीं। अब जब एक मासूम युवक की जान चली गई, तो सभी सोए हुए लोग जागकर सड़क पर नजर आने लगे। मालूम हो कि सड़क पर खंबे में लगे बैनर-फ्लैक्स से बाइक का हैंडल टकरा जाने से एक युवक की मौत हो गई है। वहीं, दूसरा युवक घायल है जिसे अस्पताल में भर्ती कराया गया है। बता दें कि, घटना के बाद अब जाकर नगर निगम हरकत में आया है। सवाल यह है कि यदि निगम पहले ही अपनी जिम्मेदारी निभाता, तो क्या इस मौत को टाला नहीं जा सकता था?
वहीं निगम की यह ‘घटना आधारित कार्यशैली’ गंभीर लापरवाही की ओर इशारा करती है। ऐसी व्यवस्था जो तब तक नहीं जागती जब तक कोई हादसा न हो जाए, वह जनता की सुरक्षा की गारंटी कैसे दे सकती है? यदि एक सामान्य नागरिक फ्लेक्स लगाता है, तो तुरंत चालान या नोटिस भेजा जाता है। लेकिन बड़े नेताओं या रसूखदारों के फ्लेक्स को देखकर निगम के कर्मचारी आंख मूंद लेते हैं।और कार्रवाई करने में शर्म आने लगती है। यह दोहरा मापदंड क्या किसी साठगांठ की ओर इशारा नहीं करता?
राहगीरों का कहना है कि, शहर में फ्लेक्स बैनर लगे हुए है। वह नियम के विरुद्ध है। नगर निगम को इन पर ध्यान देकर कार्रवाई करनी चाहिए। वहीं फ्लैश बैनर के चक्कर में एक युवक की जान चली गई। उन्होंने ये भी कहा कि, नगर निगम पहले ही फ्लेक्स बैनर निकाल लिए रहते। तो शायद ही युवक की जान जाती?