Friday, June 13, 2025
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बिलासपुर के कोटा ब्लॉक में बाइक एम्बुलेंस सेवा ठप, समय पर मदद न मिलने से गर्भ में फंसे नवजात की मौत…

बिलासपुर। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले के कोटा ब्लॉक के पहाड़ी और दूरस्थ गांवों में गंभीर स्वास्थ्य व्यवस्था संकट देखने को मिला है। बीते 10 दिनों से बंद पड़ी बाइक एम्बुलेंस सेवा ने एक मासूम की जान ले ली। सोमवार रात प्रसव पीड़ा से जूझ रही महिला को समय पर अस्पताल नहीं पहुंचाया जा सका, जिससे गर्भ में ही शिशु की मौत हो गई।

भुगतान संकट बना सेवा बाधा का कारण

जानकारी के अनुसार, बाइक एम्बुलेंस चलाने वाले कर्मचारियों को पिछले कई महीनों से न वेतन मिला है, न ही पेट्रोल के पैसे। बकाया राशि 3 लाख रुपए से अधिक हो चुकी है। इस कारण नाराज कर्मचारियों ने 10 दिन पहले सेवा बंद कर दी थी। इन एम्बुलेंसों का खर्च डीएमएफ फंड से उठाया जाता था, लेकिन हाल में यह भुगतान रुक गया है।

समय पर नहीं पहुंच सकी मदद

सोमवार रात को बहरीझिरिया गांव की शांतन बाई को अचानक प्रसव पीड़ा शुरू हुई। स्थानीय ग्रामीणों ने केंद्रा स्वास्थ्य केंद्र में संपर्क कर बाइक एम्बुलेंस मांगी, लेकिन जवाब मिला कि सेवा बंद है। काफी प्रयासों के बाद रात 12 बजे 102 एम्बुलेंस रवाना की गई, लेकिन महिला के गर्भ में बच्चा फंसा हुआ था। इलाज में देरी के चलते रास्ते में ही नवजात की मौत हो गई।

स्वास्थ्य विभाग की चुप्पी

इस मामले में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की डीपीएम प्यूली मजूमदार ने भुगतान की जानकारी होने से इनकार किया। वहीं प्रभारी सीएमएचओ सुरेश तिवारी ने स्वीकार किया कि कर्मचारी वेतन न मिलने के कारण काम नहीं कर रहे थे। उन्होंने कहा कि कलेक्टर से चर्चा कर जल्द सेवा फिर से शुरू की जाएगी।

जनप्रतिनिधियों का फूटा गुस्सा

पूर्व जनपद अध्यक्ष संदीप शुक्ला ने घटना पर दुख जताते हुए कहा कि उन्होंने कई बार संबंधित अधिकारियों को भुगतान की जानकारी दी, लेकिन कार्रवाई नहीं हुई। उन्होंने तंज कसते हुए कहा, “अगर विभाग नहीं चला पा रहा तो हमें बता दे, हम चंदा इकट्ठा कर गरीबों के लिए एम्बुलेंस चलवाएंगे।”

अवनीश शरण की पहल पर शुरू हुई थी सेवा

गौरतलब है कि एक साल पहले तत्कालीन कलेक्टर अवनीश शरण ने इन दुर्गम क्षेत्रों में बाइक एम्बुलेंस सेवा की शुरुआत की थी। इन एम्बुलेंसों ने खासकर गर्भवती महिलाओं और बच्चों को समय पर स्वास्थ्य सुविधा दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी।

सवाल खड़े कर रही सिस्टम की चूक

एक मासूम की मौत ने सिस्टम की लापरवाही और असंवेदनशीलता को उजागर कर दिया है। ऐसे में सवाल उठता है कि अगर वक्त रहते भुगतान हो गया होता, तो शायद एक जान बचाई जा सकती थी। अब देखना है कि प्रशासन कब तक इस सेवा को पुनः चालू कर पाता है।

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बिलासपुर। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले के कोटा ब्लॉक के पहाड़ी और दूरस्थ गांवों में गंभीर स्वास्थ्य व्यवस्था संकट देखने को मिला है। बीते 10 दिनों से बंद पड़ी बाइक एम्बुलेंस सेवा ने एक मासूम की जान ले ली। सोमवार रात प्रसव पीड़ा से जूझ रही महिला को समय पर अस्पताल नहीं पहुंचाया जा सका, जिससे गर्भ में ही शिशु की मौत हो गई।

भुगतान संकट बना सेवा बाधा का कारण

जानकारी के अनुसार, बाइक एम्बुलेंस चलाने वाले कर्मचारियों को पिछले कई महीनों से न वेतन मिला है, न ही पेट्रोल के पैसे। बकाया राशि 3 लाख रुपए से अधिक हो चुकी है। इस कारण नाराज कर्मचारियों ने 10 दिन पहले सेवा बंद कर दी थी। इन एम्बुलेंसों का खर्च डीएमएफ फंड से उठाया जाता था, लेकिन हाल में यह भुगतान रुक गया है।

समय पर नहीं पहुंच सकी मदद

सोमवार रात को बहरीझिरिया गांव की शांतन बाई को अचानक प्रसव पीड़ा शुरू हुई। स्थानीय ग्रामीणों ने केंद्रा स्वास्थ्य केंद्र में संपर्क कर बाइक एम्बुलेंस मांगी, लेकिन जवाब मिला कि सेवा बंद है। काफी प्रयासों के बाद रात 12 बजे 102 एम्बुलेंस रवाना की गई, लेकिन महिला के गर्भ में बच्चा फंसा हुआ था। इलाज में देरी के चलते रास्ते में ही नवजात की मौत हो गई।

स्वास्थ्य विभाग की चुप्पी

इस मामले में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की डीपीएम प्यूली मजूमदार ने भुगतान की जानकारी होने से इनकार किया। वहीं प्रभारी सीएमएचओ सुरेश तिवारी ने स्वीकार किया कि कर्मचारी वेतन न मिलने के कारण काम नहीं कर रहे थे। उन्होंने कहा कि कलेक्टर से चर्चा कर जल्द सेवा फिर से शुरू की जाएगी।

जनप्रतिनिधियों का फूटा गुस्सा

पूर्व जनपद अध्यक्ष संदीप शुक्ला ने घटना पर दुख जताते हुए कहा कि उन्होंने कई बार संबंधित अधिकारियों को भुगतान की जानकारी दी, लेकिन कार्रवाई नहीं हुई। उन्होंने तंज कसते हुए कहा, "अगर विभाग नहीं चला पा रहा तो हमें बता दे, हम चंदा इकट्ठा कर गरीबों के लिए एम्बुलेंस चलवाएंगे।"

अवनीश शरण की पहल पर शुरू हुई थी सेवा

गौरतलब है कि एक साल पहले तत्कालीन कलेक्टर अवनीश शरण ने इन दुर्गम क्षेत्रों में बाइक एम्बुलेंस सेवा की शुरुआत की थी। इन एम्बुलेंसों ने खासकर गर्भवती महिलाओं और बच्चों को समय पर स्वास्थ्य सुविधा दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी।

सवाल खड़े कर रही सिस्टम की चूक

एक मासूम की मौत ने सिस्टम की लापरवाही और असंवेदनशीलता को उजागर कर दिया है। ऐसे में सवाल उठता है कि अगर वक्त रहते भुगतान हो गया होता, तो शायद एक जान बचाई जा सकती थी। अब देखना है कि प्रशासन कब तक इस सेवा को पुनः चालू कर पाता है।