बिलासपुर। चलो बुलावा आया है माता ने बुलाया है। नवरात्रि में माँ नवदुर्गा के नौ रूपों की भव्यता से पूजा अर्चना की जाती है। सभी श्रद्धालु माता के मंदिरों में अपनी मनोकामनाएं लेकर पहुँचते हैं। चैत्र नवरात्र के दूसरे दिन बुधवार को मां ब्रह्मचारिणी की पूजा अर्चना की जाती है। विधि विधान से मां के दर्शन कर पूजा अर्चना कर परिवार में सुख समृद्धि का कामना करते हैं। मां ब्रह्मचारिणी ध्यान, ज्ञान और वैराग्य की अधिष्ठात्री देवी हैं। साधक उनकी आराधना कर ज्ञान-ध्यान के साथ वैराग्य प्राप्त कर सकते हैं। मां ब्रह्मचारिणी के हवन में सामग्री के साथ धूप, कपूर, लौंग, सूखे मेवा, मिश्री-मिष्ठान, देसी घी के साथ आहुति देकर पूजन किया जाता है।
कैसे पड़ा मां का नाम
मां ब्रह्मचारिणी का उद्भव ब्रह्मा जी के कमंडल से माना जाता है, इसीलिए इनका नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा। मां ब्रह्मचारिणी सरल स्वभाव वाली और दुष्टों को मार्ग दिखाने वाली हैं। भगवती ब्रहमचारिणी के पूजन से भगवान शिव भी प्रसन्न होते हैं
कैसा है मां ब्रहमचारिणी का रूप
इनके दाहिने हाथ में जप की माला व बाएं हाथ में कमंडल है। साधक यदि भगवती के इस स्वरूप की आराधना करते हैं, तो उनमें तप करने की शक्ति, त्याग, सदाचार, संयम और वैराग्य में वृद्धि होती है। जीव के कठिन से कठिन संघर्ष में वह विचलित नहीं होता है।
कौन सी मनोकामनाएं होती हैं पूरी
नवरात्र के दूसरे दिन मां ब्रहमचारिणी की पूजा करने से जातक को आदि और व्याधि रोगों से मुक्ति मिलती है।
मां का भोग और किस रंग के कपड़े पहनें
आज के दिन मां को सफेद चीज का भोग लगाना चाहिए और इस दिन गुलाबी या सफेद रंग के ही कपड़े पहनने चाहिए।
आपको बता दें कि बिलासपुर जिले के रतनपुर में भी माता के स्वरूप में माँ महामाया विराजमान हैं। इनके दर्शन के लिए हर साल लाखों श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं।
जम्मू के पहाड़ी पर स्थित माँ वैष्णव देवी की ख्याति जिस तरह देश दुनिया में फैली है। वैसे ही अदभुत दर्शनीय माता वैष्णो देवी का मंदिर बिलासपुर शहर से महज सात किलोमीटर दूर ग्राम नगोई है। यहां शर्मा परिवार ने इस मंदिर का निर्माण छह साल पहले कराया है। यहां पिंडी रूप में विराजी मां हर भक्त की मनोकामना पूरी करती हैं। जम्मू के बाद छत्तीसगढ़ का यह पहला मंदिर है जहां माता का दरबार सजा है। इस मंदिर की खासियत यह है कि ये मंदिर हूबहू वैष्णो देवी मंदिर की तरह है। जिस तरह वहां गुफा में वैष्णो देवी विराजमान हैं। ठीक उसी तरह यहां भी गुफा बनाकर वैष्णो देवी को स्थापित किया गया है। पूरे मंदिर को लगभग दो हजार वर्ग फीट में तैयार किया गया है।
मंदिर में वैष्णो देवी मंदिर में हनुनाम जी
मंदिर में वैष्णो देवी के पिंडी के साथ ही नवदुर्गा, द्वादश ज्योतिर्लिंग, गणेश, कार्तिक, बजरंगबली के साथ ही भैरव बाबा भी विराजमान हैं। नगोई गांव के वैष्णो मंदिर में देवी मां की तीनों पिंडियां कटरा से लाई गई हैं। तीनों पिंडी को देवी सरस्वती, देवी लक्ष्मी और मां काली के रूप में विराजमान किया गया है। मंदिर में पिंडियों के ऊपर मां का प्रतीकात्मक मुकुट और छतरी लगाए गए हैं। पूरे मंदिर को जम्मू के मां वैष्णो मंदिर का रूप दिया गया है। देवी को गुफाओं के बीच स्थापित किया गया है, ताकि यहां आने वाले भक्तों को मंदिर में विराजी वैष्णव देवी के मूल मंदिर का अहसास हो सके। इसकी भव्यता और आकर्षण देख दर्शन करने भक्तों का तांता लगा रहता है। मंदिर में वैष्णो देवी के पिंडी के साथ द्वादश ज्योतिर्लिंग विराजमान है।
जम्मू के कारीगरों ने किया कमाल
बिलासपुर के मां वैष्णो देवी मंदिर का निर्माण छह साल पहले शुरू किया गया था। यहां जम्मू कश्मीर के कारीगर आ कर मंदिर निर्माण किए हैं। लगभग छह साल तक मंदिर का निर्माण कार्य चलता रहा। पुजारी पंडित विवेक मिश्रा की मानें तो निर्माण के बाद कुछ ही दिनों में मंदिर की ख्याति इतनी बढ़ गई है कि दूर-दूर से भक्त दर्शन के लिए आने लगे हैं। मंदिर का हर एक हिस्सा वैष्णो देवी मंदिर के तरह बनाया गया है। यहां भी पहाड़ों के बीच गुफा में देवी मां विराजमान हैं।
नवरात्र पर उमड़ती है खूब भीड़
वैष्णो देवी की गुफा के ऊपरी हिस्से में देवी दुर्गा सहित उनके नौ रूपों को प्रतिमा के रूप में स्थापित किया गया है। देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा यहां रोजाना होती है। देवी दुर्गा के नौ रूपों में शैलपुत्री, ब्रह्मचारी, चंद्रघंटा, कृषमांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धदात्री की प्रतिमा स्थापित की गई है। देवी के नौ रूपों की पूजा यहां रोजाना सुबह-शाम की जाती है। इसके अलावा महादेव के 12 ज्योतिर्लिंग को भी स्थापित किया गया है।